Updated July 10th, 2020 at 22:45 IST

World Population Day poems in Hindi for you to raise awareness of the day

World Population Day is held on July 11 to raise and spread awareness of the rising global population issues. Here are World Population Day poems in Hindi.

Reported by: Pooja Dhar
| Image:self
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The World Population Day is celebrated on July 11, every year, to raise and spread awareness of the rising global population issues. World Population Day was discovered by the Governing Council of the United Nations Development Programme, back in 1989. The day took place in the public interest of Five Billion Day on July 11, 1987, which meant that the initiative was taken when the world's total population had reached five billion. The goal of World Population Day is to increase the awareness of various population issues that also include the importance of human rights, gender equality, family planning, poverty, and maternal health. Here are the World Population Day poems in Hindi to celebrate the day. 

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World Population Day Poems in Hindi

जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
खाद्द्यान्न संकट खड़ा हो गया
उर्जा संकट बढ़ा हो गया
भुखमरी चारो ओर बढ़ी

गरीबी की समस्या सामने खड़ी
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
बेरोजगारी हताशा ला रही
आर्थिक संकट की चिंता खाय जा रही

महंगाई तेजी से बढ़ रही
आम लोगो का जीना मुश्किल कर रही
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही

भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा
जनता को न्याय नहीं मिल रहा
जंगल काटे जाते है
पेड़ न कोई लगाते है
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही

बहुत से समस्याए पैदा कर रही
चारो ओर प्रदुषण बढ़ते जा रहा
नई नई बीमारिया फैला रहा
खतरे में है वन्यजीवों का जीवन

हो रहे रोज उनपर नए नए सितम
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही

हमें इन समस्यायों से निजात पाना होगा
जनसंख्या के बढ़ने पे अंकुश लगाना होगा
हमें कुछ तो कदम उठाना होगा
छोटा परिवार , सुखी परिवार का नारा लगाना होगा

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जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
खाद्द्यान्न संकट खड़ा हो गया
उर्जा संकट बड़ा हो गया

भुखमरी चारो ओर बढ़ी
गरीबी की समस्या सामने खड़ी
जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही

बेरोजगारी हताशा ला रही
आर्थिक संकट की चिंता खाए जा रही
महंगाई तेजी से बढ़ रही
आम लोगो का जीना मुश्किल कर रही

जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा
जनता को न्याय नहीं मिल रहा
जंगल काटे जाते है
पेड़ न कोई लगाते है

जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
चारो ओर प्रदुषण बढ़ते जा रहा
नई नई बीमारिया फैला रहा
खतरे में है वन्यजीवों का जीवन
हो रहे रोज उनपर नए नए सितम

जनसंख्या जो ये तेजी से बढ़ रही
बहुत से समस्याए पैदा कर रही
हमें इन समस्यायों से निजात पाना होगा
जनसंख्या के बढ़ने पे अंकुश लगाना होगा
हमें कुछ तो कदम उठाना होगा

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कौन कहता है
दुनिया की जनसंख्या सात अरब है
मुझे तो लगती यह सात सौ अरब है

हर आदमी के होते हैं
कई चेहरे, कई रूप
छाँव के रंग बदल जाते हैं
जब आती है कड़ी धूप

एक संत के चेहरे में
छिपा रहता है शैतान
त्यागी जिसे कहता है जग
आसमां छूता है उसका गुमान

बिजली से कड़कते हैं
जो बन शब्दों के जाल
हकीकत में खामोश कर देता है उन्हें
किसी का डर तो किसी का माल

जिसके चेहरे पर मुस्कुराहट, सौम्यता
और विनम्रता का निर्झर बहता है
उसके हाथों में कहीं छिपा
एक खूनी खंजर रहता है

सच के साथ खड़े होकर
करते हैं जो संपादक झूठ का पर्दाफाश
उनकी नजरों से सुरक्षित है एक औरत
नहीं कर सकते इसका भी विश्वास

मंदिर में जाकर
चन्दन का जिसने टीका लगाया होगा
नहीं जान सकता कोई
उसके मन में कितना मैल समाया होगा

सत्य, अहिंसा, मुक्ति पर
जो देता है हर रोज गुरु ज्ञान
कितने अपराधों में होगा संलग्न
नहीं लगा सकते इसका भी अनुमान

समाज सेवा की आड़ में
सेक्स स्कैंडल जैसे घृणित कार्यों को अंजाम
अहिंसा का मुखौटा लगाकर भी
होता है यहाँ कत्ले आम

छद्म नारीवादियों के रूप में
जन्मे हैं नारी के नए शोषक
लिखते हैं जो प्रेम शास्त्र
उनमें से कई मिलेंगे नफरत के पोषक

कायरों ने ओढ़ी शेरों की खाल
सन्यासी हो रहे मालामाल हैं
सच्चा आदमी पहचानना है मुश्किल
हर ओर मकड़ी के जाल हैं

चिंता जनसंख्या से ज्यादा मुझे
एक आदमी में छिपे सौ चेहरों की है
किसी मासूम को अपना निशाना बनाये
खौफ़नाक पहरो की है

देर-सबेर बढ़ती जनसंख्या पर
लगाम लग भी जायेगी
पर मुखौटे बदलने की यह प्रवृत्ति
तो दिनों-दिन बढ़ती ही जायेगी

जनसँख्या नियंत्रण के साथ ही हो नियंत्रण
एक जन में छिपे दुर्जन इरादों पर भी
प्यार की झूठी कसमों पर
और नेता के झूठे वादों पर भी

क्योंकि समस्याएं मात्रात्मक से ज्यादा
अब गुणात्मक हो रही है
दिखते हैं यहाँ शरीर ही शरीर
आत्माएं सबकी कहीं खो रही है

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Published July 10th, 2020 at 22:45 IST